Tuesday, March 8, 2011

अन्त रार्ष्ट्रीय महिला दिवस के मोके पर देश व दुनिया की समस्त महिला ब्लोगर्स को

अन्त रार्ष्ट्रीय महिला दिवस के मोके पर देश व दुनिया की समस्त महिला ब्लोगर्स को सुगना फाऊंडेशन जोधपुर की ओर हार्दिक शुभकामनाएँ..

बेटी बनकर आई हूं मैं मां बाप के जीवन में, बसेरा होगा मेरा किसी और के आंगन में। क्यों यह रीत भगवान ने बनाई होगी, कहते हैं आज नहीं तो कल तू परायी होगी। क्यों रिश्ता हमारा इतना अजीब होता है, क्या बस यही हम बेटियों का नसीब होता है।’’

सुगना फाऊंडेशन के विषम में ये मेरी माताजी {स्व० श्रीमती सुगना कंवर} की याद में बनाया गया है जिनका स्ग्वास 1 सितम्बर 2008 हो गया था! "हैम्स ओसिया इन्स्टिट्यूट" के द्वारा इनकी "प्रथम पुण्य तिथि सन् 2009 पर "सुगना फाउंड़ेशन "मेघालासिया" की स्थापना कि गई बाकी जो कारया आप करना चाहती थी उन कार्यो को अब "सुगना फाउंड़ेशन" का हर सदस्य एंव कार्यकर्ता करे! इसी उद्देश्य से स्थापना की गई है !

आज "सुगना फाउंड़ेशन" ने सामाजिक उत्थान के कारया के साथ साथ " ग्रामीण विकास के लिए कई कारया करने की योजना बनाई है ! इसके तहत ग्रामीण विद्यार्थियो के लिए ज्ञान प्रसार की पवित्र भावना से निः शुल्क स्टेशनरी सामग्री का प्रबंध एंव समाज में जो विशेष योगदान करने वालो को सम्मानित एंव उनको आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत है !

इनकी द्वितीय पुण्य तिथि सन् 2010 में आयोजित कार्यक्रम "श्री बाबा रामदेव जी महाराज" के जन्म महोत्सव पर पैदल यात्रियो के लिए फलाहार एंव मेडिकल सेवाएँ कई विद्यार्थियो तथा अन्य लोगो को सम्मानित किया गया ! इनके "
सुगना शिक्षा पुरूस्कार" शामिल थे!

सुगना फाऊंडेशन के विषम में ओर को जानकारी के लिए


स्व० "श्रीमती सुगना कंवर" के जीवन पर एक नज़र

"जीवन का लक्ष्य था समाज की सेवा"

"स्व० श्रीमति सुगना राजपुरोहित" एक नज़र मे तो एक सामान्य नारी की भाँति नज़र आती है ! लेकिन यह सोच इनकी जीवन शैली पढ़कर बदल जाएगी इन्होने अपने जीवन में तूफ़ानी झंझावतों को झेलकर,आँधियों को मोड़ कर, अंधकार को चीरकार, परेशानियो को मसलकर एक नई राह बनाई और परिवार के साथ-साथ समाज सेवा में भी नाम रोशन किया! इनका जन्म जोधपुर के एक छोटे से गाँव "कनोडीया" में सन् "जुलाई 1960 ई० मे (वि० स० 2017) लगभग में हुआ था! इनके पिता का नाम "स्व० श्री कौशल सिहं सेवड़" एक ज़मींदार किसान थे ! इनकी माता का नाम "स्व० श्रीमति मैंना देवी था ! माता पिता दोनो से सुगना कंवर उर्फ रत्न कंवर काफ़ी प्रभावित थी!
इनको अपना आदर्श मानती थी ! छ: भाई बहनो मे सुगना कंवर उर्फ रत्न कंवर सबसे छोटी थी इसलिए सबसे लाडली थी तथा इनके बड़े भाई "श्री भंवर सिह" (पूर्व एम० टी० ओफिसर आर० ए० सी० पुलिस राजस्थान) इनको प्यार से बाया बाई-सा" कहते थे ! इनके समय मे गाँव मे लड़कियों को नहीं पढ़ाया जाता था!
इनकी शिक्षा बड़े भाई के द्वारा घर पर हुई थी, इनके पिता "स्व० श्री ठा० कौशल सिंह" ने अपनी पुत्री को सदैव सत् संस्कार तथा समाज़ सेवा की सीख दी, साथ ही प्रभु कृपा से इनमे मानवीय गुण कूट-कूट कर भरे थे!
इनको बचपने से ही धार्मिक विचारो एंव समाज सेवा मे रूचि थी इनके पिता का समाज मे काफ़ी नाम था, इसलिए लोग आज भी उन्हे याद करते हैं , इसलिए इनकी रूचि समाज़ सेवा के प्रति और आकर्षित हुई!
इनकी शादी मात्र "16 वर्ष की अल्प आयु" मे श्री बिरम सिंह पुत्र श्रीमान ठा० सुजान सिंह सिया" गाँव "मेघालासिया" जिला "जोधपुर" मे हुआ था ! इनकी माता जी सदैव कहती थी ! हमारी "रत्न" बहुत छोटी है ! लेकिन इन्होने परिवार की ज़िम्मेदारी बहुत जल्दी ही संभाल ली थी ! इनके देवर बहुत छोटे थे ! जिनकी देखभाल (परवरिश) भी इनको ही करनी पड़ती थी

क्योंकि इनकी सासू माँ का स्वर्गवास इनकी शादी से कुछ वर्ष पूर्व हुआ था इसलिए अपने तीन देवरो व एक ननद की ज़िम्मेदारी भी इनके कंधो पर थी उन्हे अपने पैरो पर खड़ा किया और इसके लिए इनको काफ़ी संघर्ष का सामना करना पड़ा था ! इनके तीन पुत्र एंव दो पुत्री थी ! जिनकी परवरिश बखूबी पूर्ण की इन्होने कभी हिम्मत नही हारी (जीवन के हर सफ़र में)!

इनकी समाज सेवा मे बचपन से ही नाता रहा है ! इसलिए शादी के बाद भी परिवार की ज़िम्मेदारियों के साथ- साथ समाज़ सेवा में बहुत योगदान दिया था ! इनके सहयोग से आयोजित "प्राक्रतिक चिकित्सा शिविर" कई स्थानो पर सफलता पूर्ण किए गये तथा जिससे प्राक्रतिक चिकित्सा के प्रति लोगो की रूचि बढ़ी तथा इस चिकित्सा पद्धति के लोगो को जागरूक किया तथा ये शिविर आज भी लगाए जाते है यह सब इनके प्रयास से ही संभव हुआ था !

इनके परिवार की गिनती आज "समाज सेवा" परिवरो में होती है ! इन्होने जीवन के अंतिम समय में भी एकता की मिसाल दी थी! इसका ही उदाहरण है कि परिवार से जिन सदस्यो ने आपस मे दूरी बना ली थी! वे फिर से संगठित हो गये परंतु विधि के विधान के अनुसार 48 वर्ष की अवस्था में 1 सितंबर 2008 दिन सोमवार(हिन्दी माह वि० स०
2065 भादवा सुदी द्वितीया में हमें छोड़कर स्वर्गवासी हो गई!




स्व० श्रीमती सुगना कंवर" कहती थी -
"जो जीवन दूसरों के काम आए तो उसे ही जीवन कहते हैं जो दूसरो के दुख मे दुखी और सुख मे सुखी होता है उसे इंसानियत कहते है!"

किसी ने ठीक कहा है!
"यू तो दुनिया में सदा रहने कोई नहीं आता है!
आप जैसे गई इस तरह कोई नहीं जाता है!
इस उपवन् का दायित्व सौंपकर इतनी
जल्दी संसार से कोई नही जाता है!

आभार
हैम्स ओसिया इन्स्टिट्यूट